Friday, June 28, 2013

किताबें- ज़ारा अकरम खान

बहुत दिन हुए.. कोई हलचल नहीं हुयी यहाँ.. वक़्त भी न हमेशा इंसान को मशरूफ रखता है.. खैर सब छोड़ें -- किताबें जो की इंसान की सबसे प्यारी दोस्त होती हैं-- आज इसी कड़ी में ज़ारा अकरम खान साहिबा का ये आलेख आपके रूबरू कर रहा हूँ.

आज अपने पसंदीदा सब्जेक्ट किताबों के बारे में कुछ लिखने का मन कर रहा हैं | किताबे मानवजाति द्वारा की गयी सबसे बेहतरीन खोज है | सभ्यताओं को दिया गया सबसे बेहतरीन तोहफा है, ऐसा मेरा मानना है | मानना क्या दृढ विश्वास है | जितना सब कुछ हम पढने की आदत डालकर सीख सकते हैं उतना सिखाना तो किसी भी संस्थान के बस का नहीं | मेरी अपनी ज़िन्दगी में किताबों का बड़ा ही महत्वपूर्ण रोल रहा हैं | अगर आज मैं कुछ लिखने का और उसे दोस्तों के सामने पेश करने का हौसला कर पा रही हूँ तो ये किताबों की देन है | ये हुनर, ये हौसला, ये अंदाजेबयां सबकुछ पढ़ पढ़ कर आया है | वरना मेरी ऐसी औकात कहाँ...??? अपनी अब तक की छोटी सी और पाबंदियों भरी ज़िन्दगी में मैंने बहुतकुछ पढ़ा है | फिर भी लगता है कुछ भी नहीं पढ़ा | ऐसा लगता हैं जैसे महासागर से सिर्फ चुल्लू भर पानी ही निकाल कर पी पाई हूँ |

पढने के बारे में एक बात ख़ास तौर से कहना चाहूंगी | जरुरी नहीं की आप बड़े बड़े ग्रन्थ ही पढ़े | ऐसा करने पर ही आपका पढ़ा लिखा होना सार्थक होता हो | सुगम और मनोरंजक साहित्य पढना भी एक जीवन बदल देने वाला अनुभव साबित हो सकता हैं | प्रेमचंद जी से बढ़कर और क्या मिसाल हो सकती हैं...?? सीधी साधी भाषा में मानवीय जीवन की हर भावना को छुआ है उनकी लेखनी ने | उन के अलावा अनेको अनेक उदाहरण है जिनकी कलम ने हमे ज़िन्दगी के हर एक पहलू से वाकिफ कराया है | प्रेम,दया,घृणा,विश्वास,धोखा,वास्तल्य आदि सारी भावनाएं किरदारों में ढलकर हमारे सामने एक पूरी दुनिया का निर्माण करती है और उसी माध्यम से हम तक लेखक का सन्देश बाखूबी पहुँचता है |
हमारे देश में पुस्तक प्रेमियों की संख्या वैसे हमेशा ही कम रही है | हमारे यहाँ का पाठक किताब खरीदना एक महंगा शौक समझता है | कैसी विडम्बना है की दो सौ रुपए का पिज़्ज़ा हमे महंगा नहीं लगता पर सौ रुपए की किताब खरीदना हमारी नज़रों में फिजूलखर्ची है | हमारे यहाँ के सो कॉल्ड जागरूक माता-पिता अपने बच्चों के लिए क्या नहीं करते..?? उन्हें मॉल में ले जाते हैं, मल्टीप्लेक्स में महंगी टिकट खरीदकर उलजलूल फिल्मे दिखाते है, मैकडोनाल्ड का कूड़ा महंगे दामों में खरीदकर खिलाते है, महंगे विडियो गेम्स खरीदकर उन्हें चारदीवारी में कैद करने का खुद ही सामान करते हैं, एक शाम में हसते हसते सैंकड़ो रुपए फूंक डालते हैं | पर अफ़सोस की उन्हें कभी कोई किताब नहीं दिलवाते | ये कभी नहीं कहते की, बेटा ये किताब पढो, बहुत अच्छी हैं | क्यूँ हैं ऐसा..? क्यूँ कि माता पीता को ही पता नहीं की कौन सी किताब पढने लायक है | या पढना भी एक जरुरी चीज़ है | हम बच्चों को सिर्फ मनोरंजन देते हैं, ज्ञान नहीं | किताबों से उन्हें दोनों चीज़े हासिल हो सकती हैं |

पढना, ढेर पढना आपकी सोच का दायरा विस्तृत करने में आपकी मदद करता है | आपके अन्दर एक आत्मविश्वास तो जगाता ही है साथ ही आपके ज़हन को एक आज़ाद और कॉंफिडेंट विचारधारा प्रदान करता है | मेरा मानना है की मनोरंजन के हर साधन की और उसके प्रभाव की एक सीमा होती है | लेकिन एक अच्छी किताब आपके साथ उम्र भर चलती है | आपके ज़हन में महफूज़ रहती है |
न जाने कितनी महान विभूतियों ने कितना कुछ लिख छोड़ा है हमारे लिए | अगर पढना चाहे तो उम्र कम पड़ जाए | विश्व-साहित्य को छोड भी दिया जाए तो भी भारतीय साहित्य अपने आप में एक विशाल महासागर है | हिंदी में कितने श्रेष्ठ और गुणी लेखक हुए, जिनको पढना हर बार नई ज़िन्दगी जीने जैसा है | इसके अलावा मराठी,बंगाली,पंजाबी में भी साहित्य की अद्भुत परंपरा रही है | मैं जब बंकिम दा को पढ़ती हूँ तो मुझे अफ़सोस होने लगता है की क्यूँ उनकी सारी रचनाओं का हिंदी अनुवाद उपलब्ध नहीं ? या क्यूँ मुझे बंगाली नहीं आती...? इसी तरह जब दोस्तोवस्की,चेखव,गोर्की,शेक्सपियर या ऐसे ही किसी जगतप्रसिद्ध लेखक कि कृतियों का हिंदी अनुवाद पढ़ती हूँ तो दिल उसे उपलब्ध कराने वाले के लिए सैंकड़ो दुआए देने लगता है |

पढने के मामले में हमारे यहाँ की सोच और विदेशी सोच में बड़ा अंतर है | हमारे यहाँ किताबे कभी भी हमारे बजट में शामिल नहीं रही | ब्रांडेड कपडे और कॉस्मेटिक्स पर हजारों रुपए फूंकने में जरा भी ना हिचकिचाने वाला भारतीय मध्यमवर्ग जब किताबों पर खर्च करने की बात पर आता है तो हिसाब लगाने लगता है | विदेशों में ऐसा नहीं है | वहां का पाठक पहले किताब पसंद करता है, उसे बगल में दबाता है फिर पूछता है की क्या कीमत देनी है ! काश ऐसा सुदिन भारत में भी देखने को मिले | आज भी भारतीय परिवार अपने बच्चों को कोर्स की किताबों के अलावा कुछ और पढता देखता है तो कोहराम मचा देता है | ये सोच बदलना जरुरी है |

कहते है की साहित्य समाज का दर्पण है | आज की युवा पीढ़ी और आनेवाली पीढ़ी की इस दर्पण से वाकफियत करानी बहुतजरुरी है | आज का युवा रात को बेड पर सोने से पहले किसी अच्छी किताब को पढने की बजाय मोबाइल पे एसएमएस भेजने में और पाने में व्यस्त रहता है | पढ़ाई से पैदा हुई टेक्नोलॉजी पढ़ाई को ही ख़त्म करती प्रतीत हो रही है | ये खतरनाक ट्रेंड है | किसी भी घर में, किसी युवा की अलमारी में किताबों की बजाय सीडी, डीवीडी के लगे ढेर चिंताजनक है | इसे रोकना बेहद जरुरी है | महान विचारक सिसरो ने यूं ही नहीं कहा की पुस्तकों के बिना घर जैसे आत्मा बिना शरीर |

किताबों के बारे में मेरी एक फेवरेट कोटेशन हैं जो मैं अक्सर अक्षर-शत्रुओं के मुंह पर मारने से बाज़ नहीं आती | किसी सयाने ने कहा है की, a person who does not read, is no better than a person who can not read…सौ फीसदी सच बात है ये | जो पढना जानकर भी नहीं पढता वो तो अनपढ़ ही हुआ ! इसीलिए कहती हूँ, किताबों के जादूभरे संसार से अपना परिचय बढ़ाइए | उससे दोस्ती कीजिये | आप कभी तनहा नहीं रहेंगे | और बोरियत नाम की बीमारी तो आपको होगी ही नहीं |

जो मित्र किसी वजह से पढ़ नहीं पाते ( रूचि नहीं है, सब्र नहीं है, वक्त नहीं है या किताबे उपलब्ध नहीं है वगैरह वगैरह ) उनको मेरी सलाह है की वो अपने बच्चों में पढने पढ़ाने की आदत जरुर जरुर डाले | किताबों से उनका परिचय करायें | ऐसा करके आप उनके भविष्य को उज्जवल बनाने में बड़ी मदद करेंगे | शब्दों से उनकी दोस्ती कराइए और यकीन जानिये की वो ज़हनी तौर पर सक्षम और मजबूत हो जायेंगे | किताबे पढना एक अद्भुत,अनूठा एवं रोमांचकारी अनुभव है | पुस्तकों का संसार अद्वितीय है, अथाह है, उनकी जगह टेक्नोलॉजी की देन गजेटरी कभी नहीं ले सकती | अपनी बात चार्ल्स डब्ल्यू. इलियट के इस जगतप्रसिद्ध कथन से ख़त्म करना चाहूंगी....
“books are the quietest and most constant of friends; they are the most accessible and wisest counsellors, and the most patient of teachers.”