Wednesday, April 11, 2012

छू लो मेरे अंतर को........

ज्यादातर इस मंच पे प्रेम कवितायेँ या ज़िन्दगी की नज्में प्रकाशित की गयी हैं.. आज  आपको सरिता गुप्ता के प्रकृति प्रेम से रूबरू करता हूँ - 

# सांझ के उस झुरमुट में, 
 मैं पाती हूँ अकेला अपने को
न सुमन न भौंरे  न कलरव है 
इन मीठी सुरों की वादी का 
मौन खड़े ये वृक्ष समूह 
छिपा सूर्य जा पश्चिम 
कहती इनकी मौन वेदना 
छू लो मेरे अंतर  को........

 
छाया है प्रकृति पे नवल बसंत 
हवा बह रही  मंद मंद 
कोयल कूकती है स्वच्छंद 
धरती सजती सप्तरंग 
धरती का ये रूप देख 
होता मन मेरा देख दांग   

- सरिता गुप्ता, कानपुर
(लेखिका विद्या निकेतन गर्ल्स एजूकेशन सेंटर, हरजिंदर नगर, कानपुर में प्रधानाध्यापिका हैं )
(चित्र गूगल से साभार ) 

2 comments:

  1. सुंदर अतिसुन्दर अच्छी लगी, बधाई

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