ज़िन्दगी और देश की चिंता से ओत प्रोत कुछ पंक्तियाँ लेकर आज हमारे बीच अशरफ साहब है, जो की पेशे से एक जर्नलिस्ट हैं आप उनकी पंक्तियों पर अपनी गहरी नज़र डालें और अपने प्यार से इन लायनों को नवाजें। आपकी प्रतिक्रियायों का हमें इंतजार रहेगा-
भूख लिखूंगा, प्यास लिखूंगा
जीवन को संताप लिखूंगा !
प्यार के पागलपन में खाया था जो धोखा
उसको क्या विश्वास लिखूंगा ?
जीवन में आये रिश्तों के इस पतझड़ को
कैसे मैं बरसात लिखूंगा ?
महलों में जो रहने वाले, फुटपाथों के दर्द न जाने
हिचकोले खाते इस जीवन को कैसे मधुमास लिखूंगा ?
राम नाम की चादर ओढ़े, चौराहों पर दिखे लुटेरे
कैसे हुई विसंगति यारों, इसको क्या अभिशाप लिखूंगा ?
सड़कों पर है ठोकर खाती, बनी देश पर बोझ जवानी
बदहाली के इस सूरत को, कैसे भला विकास लिखूंगा ?
सम्प्रदाय और क्षेत्रवाद की फसल उगाकर चरने वाले
खून के छींटों, जख्म के चीत्कारों के बल पलने वाले
देश के ऐसे गद्दारों को, गाँधी और सुभाष लिखूंगा ?
- एम अफसर खान, सागर