Tuesday, June 29, 2010

राबता

हर रोज करता हूँ मैं
इक नाकाम सी कोशिश
दिल में उम्मीद की
सौ शम्मा जलाये हुए
शायद राबता कायम हो जाये
और सुन सकूँ
वो मिश्री सी घुली आवाज़
जब घंटों नहीं सुनाई देते थे
वो चंद मासूम से लफ्ज़
अजब आलम तारी होता था
दिल की अंजुमन में
अब तो दिन क्या
महीनों गुजर गए
नहीं सुनी वो आवाज़
नहीं सुने वो मासूम लफ्ज़
बस बहला लिया दिल को
यूँ ही चंद नज्मेंऔर क़तात लिखके !!!
- शाहिद अजनबी

Sunday, June 6, 2010

फिल्म 'राजनीति' मेरी नज़र में--------------->>>दीपक 'मशाल




आपने इस शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म 'राजनीति' के बारे में वैसे कई लोगों के विचार पढ़े ही होंगे... पर फिर भी अपना नजरिया रख रहा हूँ और मेरा मानना है कि राजनीति एक ऐसी फिल्म है जिसने पहली बार मुझे अहसास कराया कि कोई ऐसी फिल्म भी बन सकती है जिसमे कोई भी नायक नहीं बस और बस सभी खलनायक हों. बेशक फिल्म को तीन चर्चित कहानी/ हक़ीक़तों के आधार पर बनाया गया कह सकते हैं पर कोई भी कहानी पूरी तरह से प्रयोग नहीं की गयी इसलिए इसे खिचड़ी कहानी कह सकते हैं..... एक ऐसी कहानी जिसे बुनने में तीन -तीन कहानियों की मदद ली गयी और फिर गच्च-पच्च करके ऐसी पटकथा बनाया गया जिसका अंत बहुत हद तक देखने वाले की समझ में आप ही आ जायेगा.. और आधी या उससे कम फिल्म देखने के बाद जहाँ फिल्म का अंत पता चलने लगे उसे मैं फिल्मकार की असफलता ही मानता हूँ.
महाभारत की कहानी में कहीं-कहीं नेहरू परिवार और ठाकरे परिवार की कहानी को एक अजब रंगत देने के लिए इस्तेमाल किया गया है. पूरी तरह से महाभारत भी नहीं कह सकते हैं क्योंकि जो कभी शकुनि लगता है वो कभी कृष्ण बन जाता है, जिसे अर्जुन बनाने का प्रयास किया वो कौरव दल भी लगता है.. यहाँ भी सूरज जो महाभारत के कर्ण से मेल खाता है सारथी या ड्राइवर के घर पलता बढ़ता है और दुर्योधन की तरह ही वीरेंदर प्रताप उसे अपने दल में शामिल करता है.. और भी कई समानताएं हैं महाभारत के साथ.. शुरू से अंत तक शकुनि की तरह चालें चलने वाले नाना पाटेकर अंत में कृष्ण का रूप धर लेते हैं और कौरव कभी पांडव लगते हैं तो कभी पांडव कौरव. हर गंदे खेल को यहाँ राजनीति का नाम दे दिया गया है. कहानी को कोई ख़ास अच्छा नहीं कह सकते लेकिन मनोज वाजपेयी के अभिनय की दृष्टि से फिल्म को महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है जो कि हर किरदार पर भारी पड़े हैं.
ये बात भी सही है कि नसीर साहब यदि कहीं से वापस लाये जा सकते तो कहानी और रोमांचक और नयेपन से भर जाती.. वैसे उन्होंने बहुत छोटे से रोल में भी अच्छा अभिनय ही किया है. नाना पाटेकर अपनी एक नयी सी आवाज़ के साथ थोड़ा हटकर लगे. कैटरीना, अर्जुन रामपाल, अजय देवगन ने भी अपना चरित्र बखूबी निभाया है..
फिल्म में सन्देश ढूँढने की कोशिश करने वालों को हताशा ही हाथ लगेगी सिवाय इसके कि राजनीति में सब जायज़ है... कहीं थोड़ा सा दुःख ये भी होता है कि फिल्ममेकर भी ये मान बैठे हैं कि भारत में लोकतंत्र सिर्फ नाम का है........ है यहाँ पर अभी भी राजतंत्र ही. जनता और नेता दोनों को सिर्फ और सिर्फ चुनावों के कुछ समय पूर्व ये अहसास होता है कि इस देश में लोकतंत्र चलता है. ये बात और है कि जब भी कोई बड़ा फैसला लेना होता है तो वर्ग-विशेष को ध्यान में रख यहाँ राजनीति पर लोकतंत्र का आवरण चढ़ा कर पेश किया जाता है. फिल्म देखने के बाद राजनीति के लिए मन में एक और नफरत का बीज पड़ जाता है. ये फिल्म एक विश्वास और मजबूत करती है कि आप किसी फिल्म के महज़ कुछ दृश्य देखकर ये जान सकते हैं कि ये प्रकाश झा ने बनाई है या नहीं..
संभव है कि मैं फिल्म से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें पाल गया होऊं.. इसीलिये फिल्म एक आकर्षक और ताली बटोरू फिल्म से ज्यादा कुछ नज़र नहीं आती.. अगर आपके पास समय की कमी हो तो फिल्म को कुछ दिन इंतज़ार कर किसी चैनल पर भी देखा जा सकता है... वैसे निर्णय आपका है. :)
अरे हाँ इस हफ्ते एक और फिल्म रिलीज हुई है.. राहुल बोस की 'The Japanese Wife'.. है तो ये आर्ट फिल्म.. पर मुझे यकीन है कि अगर आप बेहतरीन कहानी, कुछ नयापन या अच्छे अभिनय को देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आपकी उम्मीदों पर खरी उतरेगी..
दीपक 'मशाल'

Friday, June 4, 2010

श्री हरी प्रसाद शर्मा जी का साक्षात्कार



दोस्तों कल यानी जून को नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे ब्लॉग के स्वामी, चिरपरिचित ब्लोगर श्री हरी प्रसाद शर्मा जी का जन्मदिन था.. इस अवसर पर श्री धीरेन्द्र सिंह जी द्वारा उनका साक्षात्कार लिया गया.. जो कि आपके सामने है-
मैं धीरेन्द्र सिंह आज श्री हरी शर्मा जी के जन्म दिन पर उनसे की गयी कुछ बातों को लेकर आप सभी के बीच उपस्थित हूँ आइये पढ़ते हैं सवाल जवाब के सिलसिले|

-हरी शर्मा जी मैं आपसे पूंछ सकता हूँ क्यूँ कि ये जिक्र कहीं नहीं सुना कि 'मर्द की उम्र नहीं पूँछी जाती इसीलिए पहला सवाल यही की अब आप कितने सालों के हो गए हैं ?
-४५ साल का जीवन पीछे छूट गया है|

-क्या आप अभी भी अपनी पत्नी और बच्चों के बीच उसी उल्लास के साथ इस ख़ुशी का जश्न मनाते हैं जैसे आप अपने माँ -बाप के साथ मनाते थे ?
-सच बात तो ये है कि मेरा पहला जन्म दिन ३९ साल पूरा होने पर मना था वो भी घर से १२०० कि.मी. दूर |

-बड़ी अजीब बात है ...खैर ...मैं आपसे पूंछना चाहूँगा कि आपकी नज़र से जन्म दिन जिसमे आप अपने जीवन का एक बर्ष और गवां बैठे हैं क्या वाकई यह जश्न की संज्ञा के लायक है ?
-जश्न का एक बहाना है ये वर्ष गवाने की भी बात नहीं है जीवन की यात्रा के मील के पत्थर है ये |

-
तो जब ये बहाना आपके जीवन में आया ३९ वें साल में आया था तब आपको कैसा लगा ? उस वक़्त आपके साथ कौन कौन था ?-हाँ मेरे साथ पदोन्नत हुए साथी थे अलग अलग आयु वर्ग के और वहा थोड़ी गुटबाजी थी सो दोनों गुट के लोगों ने अलग अलग आमंत्रित किया एक गुट ने ०२ की रात को एक गुट ने ०३ की शाम को और दिन में मेरी तरफ से पार्टी थी क\रीब ३६ घंटे ऐसा ही माहौल रहा

-वाकई बहुत अच्छा ...३९ वें साल से लेकर ४५ वें साल के बीच आये ६ बहानों में जब आपने अपनी आयु के ६ मील के पत्थर अपने रास्ते से हटाये आपको सबसे ज्यादा हर्ष कब हुआ ?
-उसके बाद ऐसा कोई मौक़ा नहीं आया हर साल हम लोग जन्मदिन पर बाहर खाना खाते हैं इस बार बेटा साथ नहीं है तो देखते है बेटी क्या आदेश देती है

-वह कहाँ हैं इन दिनों ?
-जयपुर

-आपकी बातों से स्पष्ट है कि इस जन्म दिन में आपकी कोई पूर्व योजना नहीं थी, मगर आपके अगले जन्म दिन को आप कैसे मानना चाहेंगे ऐसी कोई योजना है ?
-मेरे ५० वें जन्मदिन तक मुझे आशा है तुम बहुत नामी लेखक बन जाओगे तब जोरदार पार्टी करेंगे तब तक अपनी कविताओं का संकलन तयार कर लूंगा बच्चे भी जीवन में कुछ दिशा पा लेंगे तब जश्न मनाया जा सकता है| करोगे इंतज़ार? बस अपने सेक्रेटरी को कह देना कि प्रोटोकॉल का भय ना दिखाए, मैं ज़रा इन secretaries से आक्रान्त रहता हूँ

पहले तो आपकी शुभकामनाओं के लिए मैं तह -ऐ -दिल से शुक्रगुज़ार हूँ और उम्मीद करता हूँ आपका संकलन बहुत अच्छा हो और आपके बच्चे भी बहुत बेहतर दिशा पा लें और मुझे भरोषा है कि मेरी सेक्रेटरी हमारे बीच वादा का विषय नहीं बनेगी मैं उसे इतने अधिकार नहीं दूंगा| और मुझे ख़ुशी होगी आपके जन्म दिन में शरीक होने की शुक्रिया आमंत्रित करने के लिए|

-आप आज किस तरह के कपडे पहनना पसंद करेंगे जब बेटी के आदेश का पालन करते हुए आप अपने परिवार के साथ बहार जायेंगे ?
-जो बेटी आदेश करेगी वैसे मैं बहुत आज्ञाकारी पिता हूँ

-आज्ञाकारी पिता के साथ आप बड़े दिलचस्प व्यक्तित्व भी हैं आखिर इस स्फूर्ति और तेज दिमाग का राज क्या है ?
-स्फूर्ति तो नहीं है और दिमाग तो सभी का तेज होता है बस उसे सही दिशा की जरूरत होती है |

-आपके दिमाग के खुलेपन और उसकी सही दिशा के पीछे किसका हाथ है ?
-बहुत छोटी उम्र में कुछ बहुत खुले दिमाग के लोगों का साया रहा , अपनी स्वतंत्र सोच विकसित की|

- आप अपने बच्चों का जन्म दिन किस तरह से मनाते हैं ?
-पहले तो घर पे कुछ खास परिवार और आस -पास के बच्चे बुलाते थे और इंग्लिश तरीके का जन्मदिन मानता था पर अब बच्चो को ही अच्छा नहीं लगता उन्हें भी बाहर खाना और मल्टीप्लेक्स की मूवी ज्यादा अच्छी लगती है|

- इंग्लिश तरीके से आपका आशय क्या है ?
-केक वाला... नाच गाना...|

- अगर उस दिन दुर्भाग्य से सिनेमा में कोई अंग्रेजी फिल्म लगी हो तब आप क्या करना पसंद करते हैं ?
-हमारी रूचि नहीं है अंग्रेजी सिनेमा में


- भारतीय सिनेमा भी अब उसी और अग्रसर है इस विषय में आपके विचार क्या हैं ?
-सिनेमा का बाज़ार अब बहुत बदल गया है अब अधिकतर फिल्म बंटी ही अंग्रेजी स्कूल से निकले गिटपिट करने वाले बच्चो के लिए, और वो फिल्म देखने नहीं जाते २ घंटे का मनोरंजन करने जाते हैं

-आपके बच्चे हिंदी माध्यम से अपनी पढाई कर रहे हैं ?
-बेटा केंद्रीय विद्यालय से पढ़ रहा है उसे पूरी तरह अंग्रेजी माध्यम नहीं कह सकते बेटी शुरू में अंग्रेजी माध्यम से थी फिर १२ वीं तक हिंदी माध्यम और अब बी. बी. ए. अंग्रेजी माध्यम|

-बड़ी विडम्बना है देश की मात्र भाषा में हम अपनी शिक्षा भी पूरी नहीं कर सकते|
- मैं अंग्रेजी माध्यम के खिलाफ नहीं हूँ पर अंग्रेजी मानसिकता के खिलाफ हूँ

-आपको अपने जीवन में आपका सबसे अच्छा दोस्त कौन लगा ?
-मेरे दोस्त बहुत हैं और दोस्त अच्छे ही होते हैं फिर भी मेरा सबसे पिछले २० सालों से करीबी दोस्त कमलेश शर्मा हैं |

-आपको आपके जन्म दिन पर सबसे पहले बधाई देने वाला कौन था ?
-शायद तुम |

-मुझे बहुत खुशु होगी अगर यह शौभाग्य मेरे हिस्से में है| वैसे संचार व्यवस्थाओं की फैलती जड़ों ने यह काम बड़ा आसन और सरल कर दिया है आज कल नेट के जरिये बधाईयाँ हफ़्तों पहले ही मिल जाती हैं क्या ऐसी बधाइयां भी शुक्रिया अदा का हक रखती हैं जो आलाश्य की वजह से कभी भी प्रेषित कर दी जाती हैं ?
-क्या दिक्कत है स्नेह को ज्यादा छानने की क्या जरूरत है |

-बहुत ही अच्छे विचार हैं आपके मगर मेरे मुताबिक़ यह सुविधाओं का दुरपयोग है- आपको फ़ोन पर पहला बधाई शंदेश देखकर ख़ुशी होगी या सुबह डाकिये के हाथ में आपके किसी करीबी की बधाई का पत्र देखकर ?
-वो तो आते नहीं फ़ोन पे ही सबसे बात हो जाती है|

-सही कहा आपने मैं इस बार तो चूक गया मगर आपके अगले जन्म दिन पर आपको पत्र भेजने की पूरी कोशिश करूँगा, बहुत बहुत धन्यवाद आपके इस बहुमूल्य समय के लिए|
-धन्यवाद

तो कुछ इस तरह था मेरे और शर्मा जी के बीच सवाल जवाल का सिलसिला मैं हरी शर्मा जी को उनके जन्म दिन पर एक बार फिर से बधाई देते हुए इस वार्ता का समापन यहीं करता हूँ धन्यवाद|
आपका धीरेन्द्र सिंह