Saturday, September 19, 2009

मुक्तक

वक़्त के बदलाव संग रिश्ते भी बदलने लगे,
जहाँ को जाँ दी जिसने उसे 'माल' कहने लगे,
इक बन गई दुर्गा तो डरने लग गए उससे,
बाकी सबके साथ हरकत फिर वही करने लगे.

दीपक 'मशाल'

Wednesday, September 16, 2009

ग़ज़ल

ज़रा सी देर में दिलकश नजारा डूब जायेगा
ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा
नजाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं
हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा
सफ़ीना हो के हो पत्थर हैं हम अंजाम से वाक़िफ़
तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा
समन्दर के सफ़र में क़िस्मतें पहलू बदलती हैं
अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा
मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको
किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा

-जतिन्दर परवाज़

चित्रांकन- दीपक 'मशाल'

बाबू जी, कृपया टिप्पणी दे दीजिये...

Sunday, September 13, 2009

औरत की क्या हस्ती है?

औरत की क्या हस्ती है
चीज़ वो कितनी सस्ती है

कहीं वो दिल की रानी है
कहीं बस एक कहानी है

कितनी बेबस दिखती है
जब बाज़ार में बिकती है

कहीं वो दुर्गा माता है
इस संसार की दाता है

कहीं वो घर की दासी है
नदिया हो कर प्यासी है

सब के ताने सहती है
फिर भी वो चुप रहती है

सरस्वती का अवतार है वो
शिक्षा का भंडार है वो

किस्मत उसपे हंसती है
जब शिक्षा को तरसती है

क्या क्या ज़ुल्म वो सहती है
फिर भी हंसती रहती है

कहीं सजा यह पाती है
गर्भ में मारी जाती है

कहीं वो माता काली है
कहीं वो एक सवाली है

खाली हाथों आने पर
दान-दहेज़ ना लाने पर

ज़ुल्म ये ढाया जाता है
उसको जलाया जाता है

नीर नयन से बरसे हैं
वो मुस्कान को तरसे है

खुशियों को तरसती है
औरत की क्या हस्ती है॥

-- नीरा राजपाल
महत्वपूर्ण सूचना- इस मंच पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये। (टिप्पणी)

Thursday, September 10, 2009

नन्हे मुन्ने बच्चो

आज ग़ज़ल, नज़्म और बड़ी बड़ी बहसों जो समाज से सम्बन्ध रखती हैं , इन सब बड़ी- बड़ी बातों के दरमियाँ कोई बाल साहित्य के बारे में भी सोचे तो वाकई बड़ी अच्छी और सुंदर पहल है, आज हम अपने पाठकों को ऐसी ही एक रचना सौंप रहे हैं आपका ध्यान अपेक्षित है-
ऐ नन्हे मुन्ने बच्चो,
तुम धरती के गहने हो

तुम जग की सुन्दरता हो,

तुम मन की कोमलता हो

तुम में गाँधी- गौतम हैं,
तुम में अल्लाह ईश्वर है

तुम अपने मन में झांको,
अपनी शक्ति पहचानो

कर्त्तव्य से मुंह न मोडो,
दुश्मन को पीछे छोडो

मन मानस में बस जाओ,
अपनी पहचान बनाओ

जीवन हो सफल तुम्हारा,
है यह आशीष हमारा

- शगुफ्ता परवीन अंसारी

महत्वपूर्ण
सूचना- इस मंच पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये। (टिप्पणी)

Wednesday, September 2, 2009

Dipak 'Mashal' ki 3 rachnayen

1-

क्या खूब पायी थी उसने अदा,
ख्वाब तोड़े कई आंधिओं की तरह.
कतरे गए कई परिंदों के पर,
सबको खेला था वो बाजियों की तरह.
हौसला नाम से रब के देता रहा,
औ फैसला कर गया काजिओं की तरह.
ख़ास बनने के ख्वाब खूब बेंचे मगर,
करके छोडा हमें हाशिओं की तरह.
साहिलों को मिलाने की जुंबिश तो थी,
खुद का साहिल न था माझिओं की तरह.
जिनको दिल से लगा 'मशाल' शायर बना,
है अब लगाता उन्हें काफिओं की तरह.
दीपक 'मशाल'

2-
धुँआ-धुँआ सा नज़र आया सब,
उसने मुझको था ठुकराया जब.
इतना बेबस के जैसे खूँ ही नहीं,
गिरे बदन को जमीं से उठाया जब.
सब अधूरा सा नज़र आया था,
चाँद कोरा सा ख्वाब लाया जब.
रंग फूलों का हो गया काफुर,
कितना फीका सा शफक छाया तब.
दीपक 'मशाल'

3-
लो यहाँ इक बार फिर, बादल कोई बरसा नहीं,
तपती जमीं का दिल यहाँ, इसबार भी हरषा नहीं.
उड़ते हुए बादल के टुकड़े, से मैंने पूछा यही,
क्या हुआ क्यों फिर से तू, इस हाल पे पिघला नहीं.
तेरी वजह से फिर कई, फांसी गले लगायेंगे,
अनाथ बच्चे भूख से, फिर पेट को दबायेंगे.
माँ जिसे कहते हैं वो, खेत बेचे जायेंगे,
मजबूरियों से तन कई, बाज़ार में आ जायेंगे.
फिर रोटियों के चोर कितने, भूखे पीटे जायेंगे,
फिर कई मासूम बचपन, पल में जवां हो जायेंगे.
दीपक 'मशाल'

महत्वपूर्ण सूचना- ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये। (टिप्पणी)