आँखें पलकें गाल भिगोना ठीक नहीं
छोटी-मोटी बात पे रोना ठीक नहीं
गुमसुम तन्हा क्यों बैठे हो सब पूछें
इतना भी संज़ीदा होना ठीक नहीं
कुछ और सोच ज़रीया उस को पाने का
जंतर-मंत्र जादू-टोना ठीक नहीं
अब तो उस को भूल ही जाना बेहतर है
सारी उम्र का रोना-धोना ठीक नहीं
मुस्तक़बिल के ख़्वाबों की भी फिक्र करो
यादों के ही हार पिरोना ठीक नहीं
दिल का मोल तो बस दिल ही हो सकता है
हीरे-मोती चांदी-सोना ठीक नहीं
कब तक दिल पर बोझ उठायोगे ‘परवाज़’
माज़ी के ज़ख़्मों को ढ़ोना ठीक नहीं।
छोटी-मोटी बात पे रोना ठीक नहीं
गुमसुम तन्हा क्यों बैठे हो सब पूछें
इतना भी संज़ीदा होना ठीक नहीं
कुछ और सोच ज़रीया उस को पाने का
जंतर-मंत्र जादू-टोना ठीक नहीं
अब तो उस को भूल ही जाना बेहतर है
सारी उम्र का रोना-धोना ठीक नहीं
मुस्तक़बिल के ख़्वाबों की भी फिक्र करो
यादों के ही हार पिरोना ठीक नहीं
दिल का मोल तो बस दिल ही हो सकता है
हीरे-मोती चांदी-सोना ठीक नहीं
कब तक दिल पर बोझ उठायोगे ‘परवाज़’
माज़ी के ज़ख़्मों को ढ़ोना ठीक नहीं।
जनाब जतिंदर 'परवाज़'
चित्रांकन - दीपक 'मशाल'
महत्वपूर्ण सूचना- ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की
'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये। (टिप्पणी)